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इस जज्बे को क्यों न करे सलाम

mun ki bate
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 क्‍यों न करे इस जज्‍बे को सलाम

महेन्‍द्र कुमार ित्रपाठी, देविरया

मूक बिधरों को अक्षर ज्ञान देकर राष्‍ट की मुख्‍य धारा में

लाने का जज्‍बा तो है लेिकन सीिमत संसाधन आडे 

आ रहा है िफर भी काम करने का जुनून सवार है

संघर्ष करना आदत बन गयी है जज्‍बा व जुनून पर

संसाधन बाधा बन रही है यह िकसी कहानी का

िहस्‍सा नहीं बिल्‍क देविरया के राघव नगर मुहल्‍ले में

रहने वाले तीस वर्षीय मूक बिधर युवक राजेश पाण्‍डेय

का दर्द है जो न तो बोल सकते है और न ही सुन

सकते हैं लेिकन इशारों में साफ करते है कागज पर अपनी

पीडा व्‍यक्‍त करना इनकी आदत बन गयी है घर के इकलौते होने के बावजूद

अपनी पीडा से व्‍यिथत होकर राजेश ने अपने ही घर में मूक बिधरो के िलए चार वर्ष पहले स्‍कूल खोल दी िजसका नाम रखा स्‍वर्गीय रामाज्ञा मूक बिधर प्राइमरी िवद़यालय जो  कक्षा एक से पांच तक की पढाई वाला है वह भी पूरी तौर पर िन शुल्‍क िशक्षा यहां न तो कोई फीस ली जाती है और न ही कोई अन्‍य सुिवधा शुरूआती दौर में तो स्‍कूल ठीक चला लेिकन अब संसाधन आडे आने लगा है स्‍कूल में इस वक्‍त पैंसठ बच्‍चे है िजसमें सभी मूक बिधर है पन्‍द्रह की संख्‍या लडिकयों की बाकी लडके हैं सब में हुनर व ज्ञान लेने की अिभलाषा है पर अब नहीं लगता िक यह पाठशाला आगे चलेगी वजह जर्जर भवन और बरसात के मौसम में भर रहा पानी और िचलिचलाती धूप की गरमी बर्दाश्‍त नहीं होती बेंच भी नसीब नहीं है पीने के पानी का साधन भी मुकम्‍मल नही है संसाधन िमलने की उम्‍मीद में चार साल बीत गए लेिकन िमला तो िसर्फ स्‍थायी मान्‍यता बाकी के िलए िशक्षा िवभाग से लेकर िवकलाग िवभाग का चक्‍कर लगा रहे है स्‍कूल चलाने में अभी तक न तो कोई सरकारी मदद िमली और न ही कहीं से अनुदान सब कुछ लोगों से एक एक रुपए के चंदा से चल रहा है मामूली खेती से िनकले धन को भी मूक बिधरों को िशक्षा िदलाने के िलए लगा रहे हैं जो िशक्षक है उसमें िकसी को पांच सौ तो िकसी को तीन सौ रुपए हर माह बतौर मानदेय के रूप में िमलता है िजससे उनका भी गुजारा होना मुिश्‍कल है िजसकी वजह से वह भी अब धन के अभाव में िकनारा कसने लगे है बचे हैं िसर्फ िनरंजन श्रीवास्‍तव, जो खुद भी मूक बिधर है और गीता पाण्‍डेय, रमेश उपाध्‍याय, सुरेन्‍द्र मिण तथा सुषमा पाण्‍डेय यह सभी लोग भी आिर्थक तंगी से जूझ रहे है सबका हौसला पस्‍त हो चुका है उधर मूक बिधरों को राष्‍ट की मुख्‍य धारा में लाने का जज्‍बा रखने वाले मूक बिधर राजेश इशारों में कहते है िक अब तो पेट भी चलाना मुिश्‍कल हो गया है बच्‍चे फटेहाल हैं बैठने के िलए इंतजाम नहीं है िशक्षकों को वेतन नहीं आिखर कब तक यह चलेगा यह िचंता सता रही है लेिकन मेरा प्रयास है िक भले ही हम भूखे रहें लेिकन मूक बिधरों को समाज में सम्‍मान पूर्वक जीवन यापन के िलए बना सकें मूक बिधरों को अक्षर ज्ञान िदलाना राजेश का िमशन है

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