mun ki bate
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यूपीए सरकार के कार्यकाल का तीन वर्ष बीत गया लेकिन संसद के गलियारों से वोट फार नोट की जंग अभी चल रही है आखिर नोट का खेल कब तक चलेगा। कभी अमर का बयान तो कभी संजीव सक्सेना का स्टेटमेंट। कब तक चलेगा। जब सभी पार्टियों ने चुनाव में करोडों रुपया खर्च करने का काम करते हैं। पार्टियों के लोग यदि चुनाव प्रचार के नाम पर खर्च बंद करादें तो शायद देश का भला हो जाता। अब तो तीन साल पुराना जिन्न्ा यानि भूत दुबारा निकल गया र्है। राजनेताओं को भी तीन साल के भीतर कोई खास याद नहीं था अब सभी को याद आने लगा है।
आखिर नोट की जंग कब तक चलेगी। कुछ दिन तक बयानबाजी होगा और पिफर बंद हो जायेगा। अब तो झूठमेव जयते का ही नारा ज्यादेतर जगह पर लग रहा है।
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